- (Bhagwan Jagannath) जगन्नाथ का अर्थ होता है – “जगत के नाथ”, यानी पूरे संसार के स्वामी।
- भगवान जगन्नाथ को विष्णु जी और श्रीकृष्ण का संयुक्त रूप माना जाता है।
- इनके साथ भाई बलभद्र (बलराम) और बहन सुभद्रा की भी पूजा होती है।
जगन्नाथ मंदिर – पुरी, ओडिशा
Bhagwan Jagannath की यह मंदिर चार धामों में से एक है (बाकी तीन: बद्रीनाथ, द्वारका, और रामेश्वरम्)।
पुरी का जगन्नाथ मंदिर भारत के सबसे प्राचीन और रहस्यमयी मंदिरों में से एक है।
यह मंदिर अपने विशाल रथ यात्रा महोत्सव के लिए प्रसिद्ध है।
रथ यात्रा (Rath Yatra)
- हर साल जून-जुलाई में आषाढ़ महीने में रथ यात्रा का आयोजन होता है।
- भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा तीन विशाल रथों में बैठकर गुंडिचा मंदिर तक जाते हैं।
- लाखों श्रद्धालु इस रथ यात्रा में भाग लेते हैं, और भगवान के रथ को खींचना बहुत पुण्यकारी माना जाता है।
भगवान की मूर्ति की विशेषताएं
- भगवान जगन्नाथ (Bhagwan Jagannath) की मूर्ति लकड़ी की बनी होती है (नीम की लकड़ी, जिसे “दर्शन बराही” कहते हैं)।
- हर 12 या 19 साल में इन मूर्तियों को बदला जाता है, इस प्रक्रिया को नवकलेवर कहते हैं।
- मूर्ति का चेहरा गोल और आंखें बहुत बड़ी होती हैं, और इनके हाथ-पैर नहीं होते — यह विशेष शैली ओडिशा की लोक परंपरा से जुड़ी है।
भोग और महाप्रसाद
- जगन्नाथ मंदिर (Bhagwan Jagannath)में 56 प्रकार के भोग (महाप्रसाद) बनाए जाते हैं, जो दुनिया के सबसे बड़े रसोईघर (अन्नछत्र) में तैयार होते हैं।
- यह प्रसाद हजारों लोगों में प्रतिदिन वितरित किया जाता है।
मान्यताएं और चमत्कार
मंदिर का ध्वज हमेशा हवा के विपरीत दिशा में लहराता है।
मंदिर की छाया दिन में कभी भी ज़मीन पर नहीं पड़ती।
रथ यात्रा के समय लाखों लोग रथ को खींचते हैं, लेकिन रथ तभी चलता है जब भगवान की इच्छा होती है।
भगवान जगन्नाथ (Bhagwan Jagannath): विश्वनाथ का अद्भुत रूप
भगवान जगन्नाथ (Bhagwan Jagannath)हिन्दू धर्म के एक प्रमुख देवता हैं, जिन्हें विशेष रूप से ओडिशा राज्य के पुरी में स्थित प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर में पूजा जाता है। ‘जगन्नाथ’ शब्द का अर्थ है – जगत के स्वामी। वे भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण का ही एक दिव्य और लोकप्रिय रूप माने जाते हैं। जगन्नाथ जी की पूजा उनके भाई बलभद्र (बलराम) और बहन सुभद्रा के साथ की जाती है। इन तीनों की एक साथ पूजा भारत की धार्मिक संस्कृति का एक अनूठा उदाहरण है, जो भाईचारे, स्नेह और समर्पण का संदेश देता है।
जगन्नाथ मंदिर का महत्त्व
पुरी का जगन्नाथ मंदिर (Bhagwan Jagannath) भारत के चार धामों में से एक है और यह ओडिशा राज्य की धार्मिक पहचान भी है। यह मंदिर 12वीं शताब्दी में राजा अनंतवर्मन चोदगंग देव द्वारा बनवाया गया था। यह मंदिर न केवल वास्तु की दृष्टि से अद्वितीय है, बल्कि यह कई चमत्कारों और रहस्यों से भी घिरा हुआ है।
मंदिर के ऊपर लहराता ध्वज सदैव हवा के विपरीत दिशा में लहराता है, और मंदिर की ऊंचाई से जब ध्वज बदला जाता है, तो पुजारी बिना किसी सहारे के चढ़ते हैं। यह सब कुछ भक्ति, आस्था और श्रद्धा के अटूट संयोग को दर्शाता है।
रथ यात्रा का महत्व
भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा विश्व की सबसे बड़ी धार्मिक यात्राओं में से एक मानी जाती है। यह हर साल आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को आयोजित होती है। इस दिन भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा विशेष रूप से बनाए गए विशाल रथों पर सवार होकर नगर भ्रमण करते हैं और गुंडिचा मंदिर तक जाते हैं। यह यात्रा लगभग 3 किलोमीटर की होती है। लाखों श्रद्धालु इस यात्रा में भाग लेते हैं और भगवान के रथ को खींचना अपने जीवन का सौभाग्य मानते हैं।
रथ यात्रा का मुख्य उद्देश्य है कि भगवान खुद अपने भक्तों के पास आते हैं। यह यात्रा भक्ति, सेवा और समर्पण का अद्भुत संगम होती है।
भगवान जगन्नाथ (Bhagwan Jagannath) की मूर्ति
भगवान जगन्नाथ (Bhagwan Jagannath) की मूर्ति लकड़ी (नीम की) की बनी होती है, जो बाकी मंदिरों की पत्थर की मूर्तियों से भिन्न है। भगवान की बड़ी गोल आंखें, बिना हाथ-पैर की आकृति और विशेष रंग संयोजन उन्हें अनोखा बनाता है। हर 12 से 19 वर्षों में नवकलेवर नामक परंपरा के तहत इन मूर्तियों को बदला जाता है, जिसमें पुराने विग्रहों की विधिपूर्वक समाधि दी जाती है और नई मूर्तियों की स्थापना होती है।
महाप्रसाद – भक्तों के लिए अमृत
पुरी जगन्नाथ मंदिर में जो भोग तैयार होता है उसे महाप्रसाद कहा जाता है। यहां हर दिन 56 प्रकार के व्यंजन बनाए जाते हैं, जिसे ‘छप्पन भोग’ कहते हैं। यह भोग विशेष लकड़ी के चूल्हों पर मिट्टी के बर्तनों में पकाया जाता है। यह महाप्रसाद हजारों लोगों में वितरित किया जाता है, और इसे खाना अत्यंत पुण्यकारी माना जाता है।
आस्था का प्रतीक
भगवान जगन्नाथ केवल एक देवता नहीं, बल्कि भक्ति की वह भावना हैं जो जाति, भाषा, धर्म, पंथ सभी से ऊपर उठ जाती है। वे वह परम शक्ति हैं जो अपने भक्तों को न केवल दर्शन देते हैं, बल्कि उनके जीवन का मार्गदर्शन भी करते हैं। उनकी रथ यात्रा यह संदेश देती है कि ईश्वर स्वयं चलकर भक्तों के पास आते हैं, बस मन में सच्ची श्रद्धा होनी चाहिए।
निष्कर्ष
भगवान जगन्नाथ भारतीय संस्कृति, धर्म और परंपरा का दिव्य प्रतीक हैं। वे करुणा, भक्ति और सर्वव्यापकता का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनकी पूजा न केवल आध्यात्मिक शांति देती है, बल्कि हमें यह सिखाती है कि सच्चे हृदय से की गई प्रार्थना अवश्य फल देती है।